Thursday, December 31, 2009
नया साल, बूढी चांद.
Saturday, December 26, 2009
खत
Friday, December 25, 2009
सूरज अब नहीं नहाता
Friday, December 4, 2009
विग्यापन
Sunday, November 29, 2009
छोटी सी दुनियां
मुर्गी की बांग से हम उठेंगे
Wednesday, November 25, 2009
मुंबई २६/११
Friday, November 20, 2009
एक लडकी
Thursday, November 19, 2009
जरूरत भर की चीजें
होनी चाहिये
ज़िन्दगी में,
एक घर या कमरा
कमरे में एक तरफ लगी हो
दादी की तस्वीर, गणेश जी की मूर्ति
अगरबत्ती का पैकेट, माचिस
एक स्वादिष्ट रसोईघर
एक घडा, दो गिलास
एक कलम, कुछ किताबें,
एक छोटी कुर्सी, एक टेबल
पुराना फोटो अलबम
स्टैन्ड वाला फोटो फ्रेम
छोटा सा बगीचा
एक अमरूद का पेड
कुछ सुखे पत्ते, एक तोता
एक प्यारा सा छत, पानी की टंकी
एक गमला
छत के ऊपर बडा सा आसमान
आसमान में चमकता सूरज
तारों की बारात,
चंदा मामा
पडोस में बिट्टू का घर
एक तालाब, तालाब में मछली
एक सायकल
स्कूल, एक मास्टर जी
बांस की एक छडी
गांव के किसी मोड पे खोमचेवाला
एक चवन्नी,
कुछ पैसे,
सर्दी, गर्मी, बारिश, धूप
राजा-रानी की कहानी
एक भूत,
यार-दोस्त
दो-तीन पुराने खत,
खत में नीचे लिखा हो
सिर्फ़ तुम्हारी,
और
मां.
Sunday, November 15, 2009
बरखा-२
राघव: "हैलो."
बरखा: "हैलो."
राघव: "कैसे हो?"
बरखा: (कुनमुनाते हुये) "अच्छी हूं."
"यार तुम तो कल डि.....बा लग रही थी." डि.....बा शब्द को कई किलोमीटर तक खींचा था उसने.
"डिबा! ये क्या होता है?" वो शायद थोडी इरिटेट हुई थी. राघव को ऐसा लगा.
"डि..बा, मतलब..मतलब बहुत खूबसूरत गाया तुमने . वो अंग्रेजी में होता है न, एकदम अप्सरा टाईप." उसने कहा.
"डि..बा! अप्सरा टाईप." थोडी देर चुप रही थी वो. शायद तकिया ठीक कर रही होगी. राघव ने सोचा. फिर वो अचानक बोली.
"अरे स्टुपिड! डिबा नहीं, दिवा. दिवा. अंग्रेजी में उसे दिवा कहते है, बेवकूफ" और जोर-जोर से हंसने लगी वो.
"लेकिन मेरे यहां तो सब डिबा ही बोलते है." राघव बोला.
"डिब्बे लोग डिब्बा ही बोलेंगे न!" उसकी हंसी बडी तेज़ गति से खर्च होने लगी. हंसी की कई इंस्टौलमेंट एक साथ ही जमा कराने लगी राघव को. उसकी एक-एक हंसी चिपकने लगी राघव से.
"प्लीज, इतना मत हंसो. बहुत लोन चढ जायेगा मेरे उपर." राघव बोला. इतने में किसी ने बरखा को आवाज़ दी. फोन पे हल्का ही सुन पाया था वो.
"आ... ई..." कई किलोमीटर तक बरखा ने भी खींचा था इस शब्द को.
"अच्छा मैं रखती हूं. बाद में बात करते है." फोन कट कर दिया बरखा ने. बैलेंस जानने के लिये राघव एसएमएस करने लगा. ताकि जान सके रिश्ता अभी और कितने दिन चलेगा.
Tuesday, November 10, 2009
वक्त की कलाकारी
रिश्ते सब निठल्ले हो गये
Sunday, November 8, 2009
घर.. अब छोड रहा हूं
Sunday, October 4, 2009
नहीं कविता
तुम्हारे
नहीं होने से,
चांद पे, चिडियों के बारे में
झील पे, मौसम के लिये
तुम्हारी किसी अदाओं पे
आखों पे, तुम्हारी हंसी पे
अपनी बेबसी पे
नहीं लिख सका,
एक भी
कविता।
Friday, September 11, 2009
बूंदों की शराब
Friday, August 28, 2009
मां के कई मौसम होते है.
Friday, August 21, 2009
दूल्हनियां
Friday, August 14, 2009
फईसन देखा
कितना साधारण
Sunday, July 19, 2009
बरखा
Friday, June 12, 2009
तेरा-मेरा, क्यों?, नहीं
समेटूंगा, तुम्हारे दिये सारे गम, बेरूखी, बेरहमी
दिन-रात 'तेरा-मेरा' करना, बात-बात में दूरी का,
फ़र्क का अहसास कराना,
जमा करता रहूंगा,
हर बात में तुम्हारा 'क्यों?' कहना,
थोडी हंसी भी छिपाकर-चुराकर रख लूंगा,
तुम्हारे कहे 'क्यों?', 'तेरा-मेरा' और 'नहीं',
बोरियों में भर लूंगा,
जब
खतम हो जायेगा सबकुछ,
तुम्हारा असर तुम्हारा नशा
तब तुम्हारे दिये
गम, बेरूखी, बेरहमी, 'तेरा-मेरा',
'क्यों?', 'नहीं' और
तुम्हारी हंसी को धोकर, ऊबालकर,
धूप में सुखाऊंगा,
पीसकर-छानकर भस्म(चूरन) बनाऊंगा,
सुबह गर्म पानी के साथ, रात में दूध के साथ लूंगा
तुम फिर असर करोगे, उतरोगे
आत्मा में रूह के भीतर.
Sunday, June 7, 2009
बनकर फूल खिलो
बनकर फूल खिलो गुलशन में, डरकर तुम क्या पाओगे
जो पाया है बांट दो सबकुछ, लेकर तुम क्या जाओगे
हंसते खिलते चेहरो से, दिल का दर्द मिटाओगे
बांटोगे जो बबूल के बीज, बेर कहां से पाओगे
खुशी के दीप जलाकर तुम, गम की रात भगाओगे
सूरज को दिखा के राह, नया सवेरा लाओगे
बनकर बादल आसमां में, जो तुम छा जाओगे
पड के बून्द जमीं पे तुम, सबकी प्यास मिटाओगे
बडे न बनना खजूर जैसे, ऊंचे ही रह जाओगे
खिलोगे जो गुलाब बनके सबका आंगन सजाओगे
तुमसे होगी जवां महफ़िलें, गीत गज़ल जो गाओगे
खुशी बांटके दर्द जो लोगे, सबकी दुआयें पाओगे
हिम्मत से ही तो दुनिया में, सबने जग को जीता है
मन में विश्वास रखोगे तो, तुम भी जीत जाओगे
बनकर फूल खिलो गुलशन में, डरकर तुम क्या पाओगे
Monday, April 20, 2009
ऐसी तैसी
दीवारों की ऐसी तैसी, सरकारों की ऐसी तैसी
खादी पहन जो देश को लूटे, गद्दारों के ऐसी तैसी
साहूकारों की ऐसी तैसी, पहरेदारों की ऐसी तैसी
बच्चे जहां भूखे मरे, दूकानदारों की ऐसी तैसी
बाज़ारों की ऐसी तैसी, हज़ारों की ऐसी तैसी
मां जिनसे बेटा खो दे, हथियारों की ऐसी तैसी
परिवारों की ऐसी तैसी, रिश्तेदारों की ऐसी तैसी
मां की आंख में आंसू जो दे, ईमानदारों की ऐसी तैसी
नज़ारो की ऐसी तैसी, उन प्यारों की ऐसी तैसी
होठ पे हंसी दिलमें खंज़र, कलाकारों की ऐसी तैसी
सितारों की ऐसी तैसी, बहारों की ऐसी तैसी
दिल टूटे जिस दिल्ली में, दिलदारों की ऐसी तैसी.
Tuesday, February 10, 2009
हर दिन नया मिलोगे.
क्यों
एक टोक भर देने से
बिखर जाते हो दूर दूर तक कई दिशाओं में
फिर दौड दौड के एक एक तुमको चुनता हूं
न धूप देखता हूं न छांव न शहर न गांव
बडी संजीदगी से ढूंढके
एक एक तुमको इकठ्ठा करता हूं
धो पोंछके सुखाके बातों की ओट लगाके
प्यार की लेई से चिपकाता हूं
पूरा एक करता हूं तुमको
फिर,
चंदन का टीका लगाके, अगरबत्ती दिखाके मनाता हूं
बात कह भर देने से
मुंह बना लेते हो, बिगड जाते हो
बिखर जाते हो दूर दूर
तुम ऐसे क्यों हुए
जो भी हो, तुम ऐसे ही रहना
बार बार बिखरना
मैं बार बार इकठ्ठा करूंगा
हर दिन नया मिलोगे तुम मुझे।
Wednesday, January 7, 2009
दो लोग
दोनों में चादर की खींचतान
बीच में थोडी सी खाली जगह
कपडों के भीतर से शरीर में पहुंचती ठिठुरन
धुंध और कोहरा ऐसा
जैसे शहर के लोगों ने
बिल्कुल सोंधी सी खूश्बू कोहरे की
कोहरे के डर से सूरज नहीं दीखता
छिपकर कहीं दूर से देखता कोहरे को
कोहरे में लिपटी दिल्ली में
दो लोगों के बीच चादर की खींचतान
कभी इस तरफ कभी उस तरफ,
ये शहर दिल्ली है.