Friday, June 12, 2009

तेरा-मेरा, क्यों?, नहीं

समेटूंगा, तुम्हारे दिये सारे गम, बेरूखी, बेरहमी

दिन-रात 'तेरा-मेरा' करना, बात-बात में दूरी का,

फ़र्क का अहसा कराना,

जमा करता रहूंगा,

हर बात में तुम्हारा 'क्यों?' कहना,

थोडी हंसी भी छिपाकर-चुराकर रख लूंगा,

तुम्हारे कहे 'क्यों?', 'तेरा-मेरा' और 'नहीं',

बोरियों में भर लूंगा,

जब

खतम हो जायेगा सबकुछ,

तुम्हारा असर तुम्हारा नशा

तब तुम्हारे दिये

गम, बेरूखी, बेरहमी, 'तेरा-मेरा',

'क्यों?', 'नहीं' और

तुम्हारी हंसी को धोकर, ऊबालकर,

धूप में सुखाऊंगा,

पीसकर-छानकर भस्म(चूरन) बनाऊंगा,

सुबह गर्म पानी के साथ, रात में दूध के साथ लूंगा

तुम फिर असर करोगे, उतरोगे

आत्मा में रूह के भीतर.

Sunday, June 7, 2009

बनकर फूल खिलो

बनकर फूल खिलो गुलशन में, डरकर तुम क्या पाओगे

जो पाया  है बांट दो सबकुछ, लेकर  तुम क्या जाओगे

हंसते  खिलते   चेहरो   से,   दिल का  दर्द  मिटाओगे 

बांटोगे   जो  बबूल  के  बीज,  बेर  कहां  से   पाओगे

खुशी  के  दीप  जलाकर  तुम, गम  की रात भगाओगे

सूरज  को  दिखा के राह,    नया    सवेरा   लाओगे

बनकर  बादल  आसमां   में,  जो   तुम   छा जाओगे

पड  के  बून्द  जमीं  पे  तुम, सबकी  प्यास मिटाओगे

बडे   न    बनना  खजूर   जैसे, ऊंचे   ही  रह जाओगे

खिलोगे जो   गुलाब  बनके  सबका  आंगन  सजाओगे

तुमसे  होगी जवां  महफ़िलें,  गीत गज़ल जो गाओगे

खुशी बांटके  दर्द  जो  लोगे,  सबकी  दुआयें  पाओगे

हिम्मत से  ही  तो दुनिया में,  सबने  जग को जीता है

मन  में   विश्वास  रखोगे  तो,   तुम  भी  जीत जाओगे

बनकर फूल खिलो गुलशन में, डरकर तुम क्या पाओगे