समेटूंगा, तुम्हारे दिये सारे गम, बेरूखी, बेरहमी
दिन-रात 'तेरा-मेरा' करना, बात-बात में दूरी का,
फ़र्क का अहसास कराना,
जमा करता रहूंगा,
हर बात में तुम्हारा 'क्यों?' कहना,
थोडी हंसी भी छिपाकर-चुराकर रख लूंगा,
तुम्हारे कहे 'क्यों?', 'तेरा-मेरा' और 'नहीं',
बोरियों में भर लूंगा,
जब
खतम हो जायेगा सबकुछ,
तुम्हारा असर तुम्हारा नशा
तब तुम्हारे दिये
गम, बेरूखी, बेरहमी, 'तेरा-मेरा',
'क्यों?', 'नहीं' और
तुम्हारी हंसी को धोकर, ऊबालकर,
धूप में सुखाऊंगा,
पीसकर-छानकर भस्म(चूरन) बनाऊंगा,
सुबह गर्म पानी के साथ, रात में दूध के साथ लूंगा
तुम फिर असर करोगे, उतरोगे
आत्मा में रूह के भीतर.