Tuesday, February 23, 2010

रात सो गई मीठी होके

१.

रात बिकी है इतनी जल्दी,

सुबह, धूप की बाज़ार लगी है.

औने पौने भाव तो लेलो,

सूरज की दुकान सजी है.


२.

रात बावली, काली

करवट करवट डांटे
मुझे भोर तक सोने न दे
घर घर निन्दियां बांटे

३.
ओ मेरी प्यारी रतिया
मान ले मेरी बतिया
फूंक फूंक के तुझे बुझाऊं
जलती तू सारी रतिया


४.

रात सो गई मीठी होके,

मेरी करवटें नीम सा.

दवा ढूंढता रह गया यारों,

अंधेरे में हकीम सा



Saturday, February 20, 2010

हुक्का पानी बन्द हुआ है

दूध मलाई लड्डू बरफी
रसगुल्ला कलाकन्द हुआ है
शोर मचाओ ऐ दिलवालों
हुक्का पानी बन्द हुआ है

नैनों के नज़राने गये
खूश्बू के अफ़साने गये
खोया सोया रोया धोया
मिलने पे प्रतिबन्ध हुआ है

दिन दोपहरी रात का मंज़र
तीर चलाये मारे खंज़र
दिल को है तारीख पे जाना
वक्त का बडा पाबन्द हुआ है

दुनियां दुनियां दुश्मन दुश्मन
दुनियां दुनियां दुश्मन दुश्मन
जां फंसी है, एक पंछी
उडने को फिक्रमन्द हुआ है

शोर मचाओ ऐ दिलवालों
हुक्का पानी बन्द हुआ है

Tuesday, February 16, 2010

हंसते हंसते रात हुई है.

चार आने की बात हुई है
थोडी सी मुलाकात हुई है
वो भी भीगी, मैं भी भीगा
आंखों से बरसात हुई है.

किसने ये साज़िश की है
किसकी ये खुराफ़ात हुई है
बुझे बुझे से आग थे कल तक
सुलगी सुलगी रात हुई है.

सन्नाटे में शोर बहुत है
खामोशी में बात हुई है
थोडे ज़िन्दा थोडे मर गये
ये कैसी करामात हुई है.

होठों पे सिलवटें पडे हैं
आंखों में करवटें पडे हैं
हम भी नादां वो भी नादां
हंसते हंसते रात हुई है.




Saturday, February 13, 2010

न देव न देवदास.

किनारे किनारे ही
मोहब्ब्त का दर्द गुजर गया
हौले-हौले, आहिस्ते, बडे धीमे
टीस उठी भी तो चवन्नी छाप
इश्क की मोटी लकीर
कब साईज़ ज़ीरो हो गई
पता ही न चला
पाकेट में एक फ़ोटू तक नहीं
मेहबूब की.
सब कुछ बडे सस्ते हुआ
नदी उस पार जाने का
कभी मौका ही नहीं मिला.
कई दफ़े आसुओं को
शेयर करने के बाद
और
दूर तक साथ चलने के बाद भी
तकदीर को मंगलसूत्र नहीं पहना सका
कहीं कोई बंटवारा हुआ होगा
आसमां के उस पार
तभी तो
मोहब्बत में
न मैं उसका देव हो सका
न अपने लिये देवदास.

Thursday, February 11, 2010

अपने अपने हिस्से की धूप

हम समेटे अपने अपने हिस्से की धूप
अपने हक की बारिशें
लगाये फांट बगीचे में उगे
आम और अमरूद के पेडों का

अपने अपने हिस्से का
आटा गूंथे, पूडी तले
चवन्नी डाले अपने अपने गुल्लक में
एक बिस्तर पर बांटे करवटों को

अपने अपने हिस्से की चांदनी से रौशन हो
अगल अलग ख्वाहिश पे मरे
हमारा खुदा, भगवान हिस्सों में हो
कबूतरों के घोंसले दोनों तरफ हो अलग

हमारी आसुंओं का स्वाद हो जुदा
तुम्हारी हंसी महंगी, मेरी सस्ती हो
अलग अलग हो रूह की शक्ल
और
बिल्कुल अलग हो रगों में दौडता खून.

उफ्फ!

जाने किस घडी सोया था,
मेरे शब्द कहां गये
और
मेरी अक्ल कहां गई
अब नहीं आती कभी करीब
मेरी सारी कवितायें
विदेश चली गई है. उफ्फ!

Monday, February 8, 2010

तकदीर इतनी तो बेरहम हो मुझ पर

तेरे शहर में कुछ दिन ज़िन्दा रहूं
तेरा इतना तो रहम हो मुझ पर
खुदा का नाम तेरे बाद आये
तेरा इतना तो करम हो मुझ पर

वो दीवार गिरे जो तुमने उठाये हैं
वो आग बुझे जो तुमने लगाये हैं
किसी दिन बारिश हो इस वीराने में
आंखों से इतनी रमझम हो मुझ पर

वो अपने घर में, मैं मैकदे में रहूं
तकदीर इतनी तो बेरहम हो मुझ पर

Sunday, February 7, 2010

धीरे धीरे

रातें काली,
सफ़ेद दोपहर,
सूरज आता पुरब से
जाता पश्चिम,
आसमां ऊपर
नीचे जहां,
खाने पीने का समय सही,
फिर भी,
दिल का घटता वजन
सोचता हूं,
कहीं तुम्हारे पास तो नहीं जा रहा
धीरे धीरे.

Saturday, February 6, 2010

आज की रात चांद को नहलाया जाये

ज़ख्म थोडा थोडा दिखाया जाये
आज साथ साथ बतियाया जाये
न तुम मेरे हुए न वो तुम्हारा
पुराने गम को हंसके भुलाया जाये

बेच के नीयत, जमीर दूकानों में
कुछ कुछ बाज़ार से कमाया जाये
न तुम भूखे रहो न हम भूखे रहे
दाना डालके चिडियां फंसाया जाये

जहां सिर्फ़ तुम रहो और हम रहे
सितारों में चलके घर बनाया जाये
हो रौशन चांद की रात झक सफ़ेद
आज की रात चांद को नहलाया जाये

Thursday, February 4, 2010

तुम प्यार क्यों नहीं करते?

जबकि
तुम्हारे लिये तारों की बारात आ सकती है,
फूलों से खूश्बू,
हवायें सा रे गा मा गा सकती है,
तुम्हारे वास्ते बातों की कई किताबें छप जाये,
बारिश की पानी से कौफ़ी बन सकती है,
सारी रातें, सारे दिन तुम्हारे नाम हो सकते हैं,
छोटी टोकरी में सूरज समा सकता है,
सर्दी तुमसे कोसों दूर रह सकती है,
सांस के चप्पे-चप्पे पे तुम दस्तखत कर सकते हो,
नसों में तुम्हारे नाम का लहू दौड सकता है,
तुम्हारे लिये जां भी चली जाये,
तुम प्यार क्यों नहीं करते?

Tuesday, February 2, 2010

विचार टिकता नहीं.

कभी कोई विचार
टिकता नहीं
छोटे से दिमाग के हर कोने में
खलबली सी चले है
कल ही एक बडा विचार पैदा लिया था
आज किसी कोने में दफन है
कई चीजें एक साथ करने का विचार
मेला देखने का,
लाल किला घूमने का,
चांदनी चौक की रबडी,
मूली परांठा, खुरचन परांठा, रायता,
किताबें खरीदने का,
दौडे जाये, दौडे जाये
बिन पहिया, बिन पेट्रोल
मन,
इंडिया गेट के पार
मन स्थिर कब होता है?
तब
जब काम करते है,
थकते है, बतियाते है,
या
तब जब हम सोते है?
कभी कोई विचार
टिकता नहीं.

Monday, February 1, 2010

जबसे बबुआ भईल बारन दू पर दू बाईस के

जबसे बबुआ भईल बारन
दू पर दू बाईस के
तबसे बबुआ पहिन तारन
जीन्स लिवाईस के
ठेलत ठालत इ साहब
बी.ए. पास कईलन ह
आपन बाप मतारी के
नाम खास कईलन ह
आवते आवते आ गईलन ह
दिल्ली के बाज़ार में
कांपी-किताब खरीद खरीद के
शामिल भईलन हज़ार में
फोन-फान आ जूता-चश्मा
सौ रंग के बात ह
उजर पाईट उजर सौट
रंग बिरंगा बात ह
करे लागलन दिन पर दिन घरे
फोन फरमाईस के
जबसे बबुआ भईल बारन
दू पर दू बाईस के
तबसे बबुआ पहिन तारन
जीन्स लिवाईस के.