क्यों
एक टोक भर देने से
बिखर जाते हो दूर दूर तक कई दिशाओं में
फिर दौड दौड के एक एक तुमको चुनता हूं
न धूप देखता हूं न छांव न शहर न गांव
बडी संजीदगी से ढूंढके
एक एक तुमको इकठ्ठा करता हूं
धो पोंछके सुखाके बातों की ओट लगाके
प्यार की लेई से चिपकाता हूं
पूरा एक करता हूं तुमको
फिर,
चंदन का टीका लगाके, अगरबत्ती दिखाके मनाता हूं
बात कह भर देने से
मुंह बना लेते हो, बिगड जाते हो
बिखर जाते हो दूर दूर
तुम ऐसे क्यों हुए
जो भी हो, तुम ऐसे ही रहना
बार बार बिखरना
मैं बार बार इकठ्ठा करूंगा
हर दिन नया मिलोगे तुम मुझे।