चंदा मामा. चंदा मामा. बच्चे को मनाना हो या उसे खाना खिलाना हो. बच्चे को गोद में लिये मां चंदा को ही मां कहने लगती है. मां ने किसी घडी चांद की कलाई पे धागा बांधा और चांद मामा हो गया. मां इतनी अच्छी हो गई कि चंदा को भी मामा होना पडा. दो-दो मा. चंदा जैसे मा-मा. और कैसी तो होती है मां कि कुछ भी उरेब होने पर कान उमेठ देती है और फिर कभी सर्दियों की रात में सफ़ेद रुई वाली रजाई हो जाती है. घर का कोना-कोना गर्म. एक ही दिन मां के कई मौसम होते है. स्कूल जाते समय बोरी थमाती और ना-नुकुर करने पर पीठ के पुर्जे हिलाने वाली मां. गन्दे कपडे और भात पकाने वाली मां. कभी चुल्हे में लकडी डालके फूं..फूं..फूं करती तो कभी चिपडी डालके चुल्हे को पंखे झलती मां. स्कूल से लौटने पर हबड-हबड भात खिलाती मां. किसी हिस्से कट-छिल जाये तो बिन बादल बरसती मां. मां की दुनिया हम होते हैं पर मां हमारी दुनिया का एक हिस्सा भर हो जाती है. फिर भी हर जगह तो होती है मां . धूप, शाम, बारिश, ज़ख्म, फ़फ़ोले, रौशनाई, दवात. शहर में, गांव में. चौधिंयाती रात में, किसी दोपहर खलिहान में. हर तरफ मां की दुनिया होती है. और हम मां के हिस्से होते हैं. फिर मां सिर्फ़ हमारा हिस्सा भर कैसे हो सकती है? मां तो सिर्फ़ होती है. अपनी दुनिया में मां को पूरा होने दो. फिर कहना..
"सुबह सबेरे रात अंधेरे मां मेरी उठ जाती है
नीम, नमक, मिश्री की बोरी मां हमें दिलाती है
घाट - घाट पे बाट - बाट पे मां को काम होता है
जाग-जागके भाग-भागके मां को कब आराम होता है."
मां को होने भर दो. मां के कई मौसम होते है.