Friday, August 28, 2009

मां के कई मौसम होते है.

चंदा मामा. चंदा मामा. बच्चे को मनाना हो या उसे खाना खिलाना हो. बच्चे को गोद में लिये मां चंदा को ही मां कहने लगती है. मां ने किसी घडी चांद की कलाई पे धागा बांधा और चांद मामा हो गया. मां इतनी अच्छी हो गई कि चंदा को भी मामा होना पडा. दो-दो मा. चंदा जैसे मा-मा. और कैसी तो होती है मां कि कुछ भी उरेब होने पर कान उमेठ देती है और फिर कभी सर्दियों की रात में सफ़ेद रुई वाली रजाई हो जाती है. घर का कोना-कोना गर्म. एक ही दिन मां के कई मौसम होते है. स्कूल जाते समय बोरी थमाती और ना-नुकुर करने पर पीठ के पुर्जे हिलाने वाली मां. गन्दे कपडे और भात पकाने वाली मां. कभी चुल्हे में लकडी डालके फूं..फूं..फूं करती तो कभी चिपडी डालके चुल्हे को पंखे झलती मां. स्कूल से लौटने पर हबड-हबड भात खिलाती मां. किसी हिस्से कट-छिल जाये तो बिन बादल बरसती मां. मां की दुनिया हम होते हैं पर मां हमारी दुनिया का एक हिस्सा भर हो जाती है. फिर भी हर जगह तो होती है मां . धूप, शाम, बारिश, ज़ख्म, फ़फ़ोले, रौशनाई, दवात. शहर में, गांव में. चौधिंयाती रात में, किसी दोपहर खलिहान में. हर तरफ मां की दुनिया होती है. और हम मां के हिस्से होते हैं. फिर मां सिर्फ़ हमारा हिस्सा भर कैसे हो सकती है? मां तो सिर्फ़ होती है. अपनी दुनिया में मां को पूरा होने दो.
फिर कहना..
"सुबह सबेरे रात अंधेरे मां मेरी उठ जाती है
नीम, नमक, मिश्री की बोरी मां हमें दिलाती है
घाट - घाट पे बाट - बाट पे मां को काम होता है
जाग-जागके भाग-भागके मां को कब आराम होता है."
मां को होने भर दो. मां के कई मौसम होते है.

Friday, August 21, 2009

दूल्हनियां

उछाल मारती उम्मीद से अब कोई भी उम्मीद बेमानी है. लाख रगड के, दिमाग के कोई भी पेंच खोल के, कुछ ऐसा हो जाये कि लोग नाम लेने लगे एक बार, बस. गोल, चाकर चाहे तिरपिटाह ढंग की कोई गोली मदद नहीं करती ऐसे में. मन रोज़ इस लालच से दौड लगाता है कि अबकी बार त फर्स्ट हो ही जायेंगे. कै रंग के पुडिया भी फांक लिया. फिर भी बात ओतने के ओतने. उतना ही ज़ोर लगाना पडता है भोरे भोरे. एस्नो पौडर लगयला के बाद, हाफ़ शेरवानी पहनने के बाद भी दूल्हा तो क्या, सहबोलिया भी नहीं बन पाया हूं लाईफ़ का. परयासरत हूं. फिर भी. कभी निमंत्रण पत्र हाथ लग गया किसी लगन तो, बाराती तो बन ही जाऊंगा. फिर ढोल, बाजे तमाशे. ठीन चक ठीन चक...., आज मेरे यार की सादी है...., आये हम बरियाती बारात लेके, जायेंगे तुम्हें भी अपने साथ लेके.... नाचते गाते हुए पहूंचूंगा. लोग सब मस्ती में लोटा रहे होंगे. ...कौफ़ी, कोको कोला, चाट, शरबत पीते लोगों के बीच उठके मार दूंगा दूल्हा को. ....ठांय.ठांय. और बिदागरी कराके ले आऊंगा अपने घर. लाईफ़ को. हा...हा..हा...

Friday, August 14, 2009

फईसन देखा

अईसन देखा वईसन देखा
जगह जगह पर फईसन देखा
कईसन देखा कईसन देखा
जगह जगह पर फईसन देखा

अईसन देखा अईसन देखा

अन्तर मन्तर जन्तर देखा
पाउडर लगाए बन्दर देखा
देसि मुर्गी विलायती बोल
चउक चउक जोगिन्दर देखा

अईसन देखा अईसन देखा

छोट कपड में लईकीसन
नील गगन में उडत जाये
कान में ठेपी मुंह से धुआं
ऊल्टा सबकुछ गडबड देखा

अईसन देखा अईसन देखा

लाल लिबिस्टिक पीअर टिकुली
अप-टू-डेट मन्त्रियाईन
उजर उजर खादी में
करिया करिया मिनिस्टर देखा

अईसन देखा वईसन देखा
जगह जगह पे फईसन देखा.

कितना साधारण

होठ पे हंसी की बूंदाबूंदी
आंखों में ख्वाबों की चहल-पहल
इशारों में कलाकारी
बातों से तीरंदाजी
सब बातें तुममे
सबकुछ खास तुम्हारा
और मैं...
कितना साधारण.