सलाम करता चलूं!
खूश्बू जैसे शब्द खिले हैं.
Friday, January 29, 2010
हंसी
खुरदुरे चेहरे के रास्तों पे
किलोमीटर तक चलती हंसी
किसी मोड दिल रह गया
किसी गली जान फंसी
होठ से निकलते हुए
नाक से गुजरते हुए
आंखों की दूकान पे
कानों की सुरंगों में
सर पे पसर गया
बालों की झाडियों में
लिपटी, फंसी, रची-बसी
किलोमीटर तक चलती हंसी.
Tuesday, January 26, 2010
आज़ादी की मरम्म्त करनी होगी.
होठ
से
हंसी
निकले
गले
से
सुरमई
गीत
ऐसी
कोई
टैबलेट
खिलाई
जाये
,
चेहरे
पे
निखार
आये
कोई
निशां
न
हो
ऐसी
फ़ेयरनेस
क्रीम
लगाई
जाये
,
रहे
मज़बूत
सालों
तक
हड्डियां
सलामत
रहे
अच्छे
ब्रांड
की
च्यवनप्राश
दी
जाये
,
मूंछ
बडी
-
बडी
हो
लम्बी
सूट
-
बूट
में
लगे
गंवार
ऐसे
सजाया
जाये
बालों
में
तेल
गालों
में
लाली
हो
ऐसी
शानदार
मालिश
की
जाये
कील
-
पेंच
हथौडे
से
ठोक
-
ठेठा
कर
कसौटी
पे
कसना
होगा
ये
जो
मिली
थी
न
साठ
साल
पहले
आज़ादी
आज़ादी
की
मरम्म्त
करनी
होगी
.
..तो नज़र आना सिर्फ़ तुम.
मेरी करवटों में सोना,
धडकनों में होना,
आहटों में आना,
मेरे होठों से कहना,
आंखों से बहना,
पलकों से झपकना,
मेरी माथे पे चमकना,
खुशियों में चहकना,
नशे में बहकना,
मेरी सुबह में उतरना,
शाम में ढलना,
रात में बदलना,
मेरी रगों में चलना,
किसी भोर उठके
आंख मलते हुए
जब आईना देखूं
तो नज़र आना
तुम.
Thursday, January 21, 2010
चलो, प्याली में चांद पीया जाये.
१.
धूप की सरकार गिर गई
सूरज नज़रबंद हुआ है
मौसम का दिल है जला
कोहरे की धुंआ है.
२.
बदन पें बूंदें
जुबां से कोहरे की सांस छोडती है
बर्फ़ीले मौसम में
पुराने रिश्ते उभर रहे है
शिमला की मैसेरी बहन निकली, दिल्ली.
३.
अलाव जलाये रास्तों पे
आग से दोस्ती कर लें
कोहरे की खाट खडी हो
चलो,
प्याली में चांद पीया जाये.
४.
शाम से रात तक,
रात से सुबह तक की चेकों पे
कोहरों की दस्तखत है, दिल्ली.
Sunday, January 17, 2010
दो-दो दिन पे खफ़ा होना, तुम
कुछ अगर होना हो तो
मेरे लिये मां होना
तुम
सारी दुनियां एक तरफ़
मेरा सारा जहां होना
तुम
रिश्ते नाते सब है बातें
छोटी मोटी वफ़ा होना
तुम
मुझमें रहके कभी कभी
हल्के फ़ुल्के जुदा होना
तुम
धन-दौलत न चांदी सोना
मेरे लिये हवा होना
तुम
मंदिर मस्जिद मैं न जाऊं
मेरे भीतर खुदा होना
तुम
तुमको देख मैं पगला जाऊं
नीली-पीली अदा होना
तुम
मर जाऊं जिन्दा भी रहूं
दो-दो दिन पे खफ़ा होना
तुम
Wednesday, January 13, 2010
सफ़ेद-सफ़ेद ओस
सफ़ेद-सफ़ेद ओस
उतर आती है.
चाय की तलब
दिन भर लगी रहती है.
शाम होते ही
रोआं सिहरने लगता है.
जैकेट को
लिहाफ़ बनाने की नाकाम कोशिशें
चलती है दिन भर.
उठो तो
बैठने का जी नहीं.
बैठो तो
उठने का मन नहीं करता.
किसी कब्र में
लेटने को जी करता है.
इन कोहरों को
कोई टोपी पहनाये
रगों में खून के बदले
सर्दी दौड रही है आजकल.
दिल्ली.
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