Thursday, August 26, 2010

ज़िन्दगी पगलाई है।

एक पर्चे पे नाम लिखा

साहब(गुलज़ार) ने मेरा,

दिल ने ली अंगड़ाई है,

ठंडी हवा सी आई है,

इतराके, उछलके

फुदकके खुशी के दाने चुगती

मुद्दतों बाद

ज़िन्दगी पगलाई है।

Tuesday, August 17, 2010

बाप रे

पप्पू सोने जाते वक़्त सोचने लगा,
बाप रे,
कितना मुश्किल होता
अगर हम जैसे लोगों के पास
कोई एक मुमताज होती,
पूरा एक ताजमहल बनवाना होता उसकी याद में.
बाप रे
सोचते सोचते सो गया पप्पू .
सुबह उठकर काम पे चला गया
शायद आज फिर रात के वक़्त सोचे
बाप रे.

Saturday, July 31, 2010

नई चिड़ियों में आग है

नई चिड़ियों में आग है
आजकल
हर तरफ दाग है
धू -धडाक, माथा-पच्ची यारों
ज़िंदगी साग है

किस करवट बैठेगी मुनिया
किसको है ये खबर
किस जगह ठहरेगी दुनिया
श्याम, सोम, समर/ रात- दिन- दोपहर

ताल है उल्टा- पुल्टा कुल्टा
बेसुरा राग है
नई चिड़ियों में आग है
आजकल
हर तरफ दाग है

फूँक मारके दिल बुझाए
एक ही इशारे से
दल बदलके उसकी हो जाए
एक ही किनारे से

काल बनके सर पे बैठे
खूबसूरत काग है
नई चिड़ियों में आग है
आजकल
हर तरफ दाग है

नई चिड़ियों में आग है
आजकल
हर तरफ दाग है
धू -धडाक, माथा-पच्ची यारों
ज़िंदगी साग है

Wednesday, June 2, 2010

खूं रगों में खाली है

बातों की बतीहर से रौशन, रातें काली काली है
रातें लम्बी लम्बी काली, खूं रगों में खाली है

है उचक्का दिल अगर तो, दिनभर दिवाली है
तू कहीं गर रुक गया तो, वक़्त की तू साली है

है बड़ा जालिम सिपाही, आँखों में तेरी लाली है
मिल गया हाथों से हाथ, तो समझना ताली है

ये कबीरा दिल लगा न, कोई नहीं दिलवाली है
रोयेगा मंदिर में जाके, तू भी एक सवाली है

है अगर सरकार तेरी, करनी तो रखवाली है
कुछ अगर खो गया तो, तू बड़ा मवाली है

रातें काली काली है, रातें काली काली है....


Sunday, May 30, 2010

शादी की ३७वीं सालगिरह

कोई - सौ किलोमीटर चलके आता है.
पुराने हो चुके किसी ३७ साल की बात के लिये
ज़ुबां पे एक शब्द तक नहीं,
सुबह से घर में चहल-पहल रहती है
पुलाव और मटर की खुश्बू में
कुछ रिश्ते महक रहे हैं
२९
मई २०१०
शादी की ३७वीं सालगिरह
माँ बाबूजी को
मुबारक हो

Thursday, May 20, 2010

उम्र की उपलब्धि

उम्र की उपलब्धि
रोज़ माथे पर सवार हो जाती है
कुछ खुदबुदाहट होता है
और सर के कई बाल सफ़ेद हो जाते है
थोड़े खुशफहमी में दिन कटता है
और कुछ खुशबू आसपास चक्कर लगाती है
एक बाती में फंसी अगरबती
खुशबू और धुँआ उगलता है
अपनी तक़दीर की अगरबती बनाके
जलाओगे तो खुशबू तो आयेगी ही
माथे की लकीर भी
खुशबू के साथ मिट जायेगी.

Wednesday, May 12, 2010

यादगार पात्र होने की चाह ज़िन्दगी.

मेले में बिक रहे किसी
बैलून, चश्मे, लाई-पकौडी
झूला, सेवई, जलेबी
रास्ते का सबसे घना पेड
फट चुकी किताब
लाल रंग
हिन्दी फ़िल्मों का 'राज', 'विजय'
बंगाली बाबा का जादू
हाशमी दवाखाना की शीशी
कमजोरी भगाने वाली खुराक
मोटा वाला बैंक अकाऊंट
ज़ीरो साईज़ टेंशन
खाके सोने वाली दिनचर्या
नदी-नाले की ठंडी हवा
और
किसी कहानी की पूंछ पकडके
कोई यादगार पात्र होने की चाह
ज़िन्दगी.

Tuesday, February 23, 2010

रात सो गई मीठी होके

१.

रात बिकी है इतनी जल्दी,

सुबह, धूप की बाज़ार लगी है.

औने पौने भाव तो लेलो,

सूरज की दुकान सजी है.


२.

रात बावली, काली

करवट करवट डांटे
मुझे भोर तक सोने न दे
घर घर निन्दियां बांटे

३.
ओ मेरी प्यारी रतिया
मान ले मेरी बतिया
फूंक फूंक के तुझे बुझाऊं
जलती तू सारी रतिया


४.

रात सो गई मीठी होके,

मेरी करवटें नीम सा.

दवा ढूंढता रह गया यारों,

अंधेरे में हकीम सा



Saturday, February 20, 2010

हुक्का पानी बन्द हुआ है

दूध मलाई लड्डू बरफी
रसगुल्ला कलाकन्द हुआ है
शोर मचाओ ऐ दिलवालों
हुक्का पानी बन्द हुआ है

नैनों के नज़राने गये
खूश्बू के अफ़साने गये
खोया सोया रोया धोया
मिलने पे प्रतिबन्ध हुआ है

दिन दोपहरी रात का मंज़र
तीर चलाये मारे खंज़र
दिल को है तारीख पे जाना
वक्त का बडा पाबन्द हुआ है

दुनियां दुनियां दुश्मन दुश्मन
दुनियां दुनियां दुश्मन दुश्मन
जां फंसी है, एक पंछी
उडने को फिक्रमन्द हुआ है

शोर मचाओ ऐ दिलवालों
हुक्का पानी बन्द हुआ है

Tuesday, February 16, 2010

हंसते हंसते रात हुई है.

चार आने की बात हुई है
थोडी सी मुलाकात हुई है
वो भी भीगी, मैं भी भीगा
आंखों से बरसात हुई है.

किसने ये साज़िश की है
किसकी ये खुराफ़ात हुई है
बुझे बुझे से आग थे कल तक
सुलगी सुलगी रात हुई है.

सन्नाटे में शोर बहुत है
खामोशी में बात हुई है
थोडे ज़िन्दा थोडे मर गये
ये कैसी करामात हुई है.

होठों पे सिलवटें पडे हैं
आंखों में करवटें पडे हैं
हम भी नादां वो भी नादां
हंसते हंसते रात हुई है.




Saturday, February 13, 2010

न देव न देवदास.

किनारे किनारे ही
मोहब्ब्त का दर्द गुजर गया
हौले-हौले, आहिस्ते, बडे धीमे
टीस उठी भी तो चवन्नी छाप
इश्क की मोटी लकीर
कब साईज़ ज़ीरो हो गई
पता ही न चला
पाकेट में एक फ़ोटू तक नहीं
मेहबूब की.
सब कुछ बडे सस्ते हुआ
नदी उस पार जाने का
कभी मौका ही नहीं मिला.
कई दफ़े आसुओं को
शेयर करने के बाद
और
दूर तक साथ चलने के बाद भी
तकदीर को मंगलसूत्र नहीं पहना सका
कहीं कोई बंटवारा हुआ होगा
आसमां के उस पार
तभी तो
मोहब्बत में
न मैं उसका देव हो सका
न अपने लिये देवदास.

Thursday, February 11, 2010

अपने अपने हिस्से की धूप

हम समेटे अपने अपने हिस्से की धूप
अपने हक की बारिशें
लगाये फांट बगीचे में उगे
आम और अमरूद के पेडों का

अपने अपने हिस्से का
आटा गूंथे, पूडी तले
चवन्नी डाले अपने अपने गुल्लक में
एक बिस्तर पर बांटे करवटों को

अपने अपने हिस्से की चांदनी से रौशन हो
अगल अलग ख्वाहिश पे मरे
हमारा खुदा, भगवान हिस्सों में हो
कबूतरों के घोंसले दोनों तरफ हो अलग

हमारी आसुंओं का स्वाद हो जुदा
तुम्हारी हंसी महंगी, मेरी सस्ती हो
अलग अलग हो रूह की शक्ल
और
बिल्कुल अलग हो रगों में दौडता खून.

उफ्फ!

जाने किस घडी सोया था,
मेरे शब्द कहां गये
और
मेरी अक्ल कहां गई
अब नहीं आती कभी करीब
मेरी सारी कवितायें
विदेश चली गई है. उफ्फ!

Monday, February 8, 2010

तकदीर इतनी तो बेरहम हो मुझ पर

तेरे शहर में कुछ दिन ज़िन्दा रहूं
तेरा इतना तो रहम हो मुझ पर
खुदा का नाम तेरे बाद आये
तेरा इतना तो करम हो मुझ पर

वो दीवार गिरे जो तुमने उठाये हैं
वो आग बुझे जो तुमने लगाये हैं
किसी दिन बारिश हो इस वीराने में
आंखों से इतनी रमझम हो मुझ पर

वो अपने घर में, मैं मैकदे में रहूं
तकदीर इतनी तो बेरहम हो मुझ पर

Sunday, February 7, 2010

धीरे धीरे

रातें काली,
सफ़ेद दोपहर,
सूरज आता पुरब से
जाता पश्चिम,
आसमां ऊपर
नीचे जहां,
खाने पीने का समय सही,
फिर भी,
दिल का घटता वजन
सोचता हूं,
कहीं तुम्हारे पास तो नहीं जा रहा
धीरे धीरे.

Saturday, February 6, 2010

आज की रात चांद को नहलाया जाये

ज़ख्म थोडा थोडा दिखाया जाये
आज साथ साथ बतियाया जाये
न तुम मेरे हुए न वो तुम्हारा
पुराने गम को हंसके भुलाया जाये

बेच के नीयत, जमीर दूकानों में
कुछ कुछ बाज़ार से कमाया जाये
न तुम भूखे रहो न हम भूखे रहे
दाना डालके चिडियां फंसाया जाये

जहां सिर्फ़ तुम रहो और हम रहे
सितारों में चलके घर बनाया जाये
हो रौशन चांद की रात झक सफ़ेद
आज की रात चांद को नहलाया जाये

Thursday, February 4, 2010

तुम प्यार क्यों नहीं करते?

जबकि
तुम्हारे लिये तारों की बारात आ सकती है,
फूलों से खूश्बू,
हवायें सा रे गा मा गा सकती है,
तुम्हारे वास्ते बातों की कई किताबें छप जाये,
बारिश की पानी से कौफ़ी बन सकती है,
सारी रातें, सारे दिन तुम्हारे नाम हो सकते हैं,
छोटी टोकरी में सूरज समा सकता है,
सर्दी तुमसे कोसों दूर रह सकती है,
सांस के चप्पे-चप्पे पे तुम दस्तखत कर सकते हो,
नसों में तुम्हारे नाम का लहू दौड सकता है,
तुम्हारे लिये जां भी चली जाये,
तुम प्यार क्यों नहीं करते?

Tuesday, February 2, 2010

विचार टिकता नहीं.

कभी कोई विचार
टिकता नहीं
छोटे से दिमाग के हर कोने में
खलबली सी चले है
कल ही एक बडा विचार पैदा लिया था
आज किसी कोने में दफन है
कई चीजें एक साथ करने का विचार
मेला देखने का,
लाल किला घूमने का,
चांदनी चौक की रबडी,
मूली परांठा, खुरचन परांठा, रायता,
किताबें खरीदने का,
दौडे जाये, दौडे जाये
बिन पहिया, बिन पेट्रोल
मन,
इंडिया गेट के पार
मन स्थिर कब होता है?
तब
जब काम करते है,
थकते है, बतियाते है,
या
तब जब हम सोते है?
कभी कोई विचार
टिकता नहीं.

Monday, February 1, 2010

जबसे बबुआ भईल बारन दू पर दू बाईस के

जबसे बबुआ भईल बारन
दू पर दू बाईस के
तबसे बबुआ पहिन तारन
जीन्स लिवाईस के
ठेलत ठालत इ साहब
बी.ए. पास कईलन ह
आपन बाप मतारी के
नाम खास कईलन ह
आवते आवते आ गईलन ह
दिल्ली के बाज़ार में
कांपी-किताब खरीद खरीद के
शामिल भईलन हज़ार में
फोन-फान आ जूता-चश्मा
सौ रंग के बात ह
उजर पाईट उजर सौट
रंग बिरंगा बात ह
करे लागलन दिन पर दिन घरे
फोन फरमाईस के
जबसे बबुआ भईल बारन
दू पर दू बाईस के
तबसे बबुआ पहिन तारन
जीन्स लिवाईस के.


Friday, January 29, 2010

हंसी

खुरदुरे चेहरे के रास्तों पे
किलोमीटर तक चलती हंसी
किसी मोड दिल रह गया
किसी गली जान फंसी
होठ से निकलते हुए
नाक से गुजरते हुए
आंखों की दूकान पे
कानों की सुरंगों में
सर पे पसर गया
बालों की झाडियों में
लिपटी, फंसी, रची-बसी
किलोमीटर तक चलती हंसी.

Tuesday, January 26, 2010

आज़ादी की मरम्म्त करनी होगी.

होठ से हंसी निकले
गले से सुरमई गीत
ऐसी कोई टैबलेट खिलाई जाये,
चेहरे पे निखार आये
कोई निशां हो
ऐसी फ़ेयरनेस क्रीम लगाई जाये,
रहे मज़बूत सालों तक
हड्डियां सलामत रहे
अच्छे ब्रांड की च्यवनप्राश दी जाये,
मूंछ बडी-बडी हो लम्बी
सूट-बूट में लगे गंवार
ऐसे सजाया जाये
बालों में तेल
गालों में लाली हो
ऐसी शानदार मालिश की जाये
कील-पेंच हथौडे से ठोक-ठेठा कर
कसौटी पे कसना होगा
ये जो मिली थी
साठ साल पहले आज़ादी
आज़ादी की मरम्म्त करनी होगी.

..तो नज़र आना सिर्फ़ तुम.

मेरी करवटों में सोना,
धडकनों में होना,
आहटों में आना,
मेरे होठों से कहना,
आंखों से बहना,
पलकों से झपकना,
मेरी माथे पे चमकना,
खुशियों में चहकना,
नशे में बहकना,
मेरी सुबह में उतरना,
शाम में ढलना,
रात में बदलना,
मेरी रगों में चलना,
किसी भोर उठके
आंख मलते हुए
जब आईना देखूं
तो नज़र आना
तुम.

Thursday, January 21, 2010

चलो, प्याली में चांद पीया जाये.

१.
धूप की सरकार गिर गई
सूरज नज़रबंद हुआ है
मौसम का दिल है जला
कोहरे की धुंआ है.

२.
बदन पें बूंदें
जुबां से कोहरे की सांस छोडती है
बर्फ़ीले मौसम में
पुराने रिश्ते उभर रहे है
शिमला की मैसेरी बहन निकली, दिल्ली.

३.
अलाव जलाये रास्तों पे
आग से दोस्ती कर लें
कोहरे की खाट खडी हो
चलो,
प्याली में चांद पीया जाये.

४.
शाम से रात तक,
रात से सुबह तक की चेकों पे
कोहरों की दस्तखत है, दिल्ली.

Sunday, January 17, 2010

दो-दो दिन पे खफ़ा होना, तुम

कुछ अगर होना हो तो
मेरे लिये मां होना
तुम
सारी दुनियां एक तरफ़
मेरा सारा जहां होना
तुम

रिश्ते नाते सब है बातें
छोटी मोटी वफ़ा होना
तुम
मुझमें रहके कभी कभी
हल्के फ़ुल्के जुदा होना
तुम

धन-दौलत न चांदी सोना
मेरे लिये हवा होना
तुम
मंदिर मस्जिद मैं न जाऊं
मेरे भीतर खुदा होना
तुम

तुमको देख मैं पगला जाऊं
नीली-पीली अदा होना
तुम
मर जाऊं जिन्दा भी रहूं
दो-दो दिन पे खफ़ा होना
तुम

Wednesday, January 13, 2010

सफ़ेद-सफ़ेद ओस

सफ़ेद-सफ़ेद ओस
उतर आती है.
चाय की तलब
दिन भर लगी रहती है.
शाम होते ही
रोआं सिहरने लगता है.
जैकेट को
लिहाफ़ बनाने की नाकाम कोशिशें
चलती है दिन भर.
उठो तो
बैठने का जी नहीं.
बैठो तो
उठने का मन नहीं करता.
किसी कब्र में
लेटने को जी करता है.
इन कोहरों को
कोई टोपी पहनाये
रगों में खून के बदले
सर्दी दौड रही है आजकल.
दिल्ली.