Thursday, August 26, 2010

ज़िन्दगी पगलाई है।

एक पर्चे पे नाम लिखा

साहब(गुलज़ार) ने मेरा,

दिल ने ली अंगड़ाई है,

ठंडी हवा सी आई है,

इतराके, उछलके

फुदकके खुशी के दाने चुगती

मुद्दतों बाद

ज़िन्दगी पगलाई है।

Tuesday, August 17, 2010

बाप रे

पप्पू सोने जाते वक़्त सोचने लगा,
बाप रे,
कितना मुश्किल होता
अगर हम जैसे लोगों के पास
कोई एक मुमताज होती,
पूरा एक ताजमहल बनवाना होता उसकी याद में.
बाप रे
सोचते सोचते सो गया पप्पू .
सुबह उठकर काम पे चला गया
शायद आज फिर रात के वक़्त सोचे
बाप रे.