Thursday, December 31, 2009

नया साल, बूढी चांद.

नया साल.
वही पुराना सूरज, पीली धूप
बूढी चांद, थकेली चान्दनी
एक्वागार्ड से निकला पानी
ईटों का कब्र, मकान
रिश्तों में मीलों के फ़ासले
हरी घास, घिस चुके गुलाब
पापी पेट का रोना
बुजूर्ग ख्वाहिशें, मकान, गाडी, अच्छी नौकरी
टी.वी, फ़्रिज, वाशिंग मशीन
ठेकों पे लम्बी भीड
हथियारों का खेल, अमेरिका, रुस, चीन, भारत
मन्दिर, मस्जिद, चर्च
इन्डिया गेट, कोहरे की किताब दिल्ली
प्यार के लफ़्ज 'आई लव यू'
वही तेरा-मेरा
वही रंग, हिन्दू, मुसलमान, यहूदी, ईसाई
वही धूल से सने संदेश, 'हैप्पी न्यू इयर'
नया साल २०१०.

Saturday, December 26, 2009

खत

मां,
आशा है कि तुम ठीक होगी.
मेरा ये है कि,
जब तक सुबह बूढी नहीं होती
नींद अपनी पूरी उम्र जीती है.
हर सुबह
यहां की सर्दी को
गर्म पानी से पीटता हूं.
गुनगुने पानी की धार
और
दूबली हो चुकी धूप
तुम्हारी बात मानती होगी.
धड-फड तैयार होता हूं.
पर मां,
आफिस फिर भी
वक्त पर पहुंचता हूं.
आफिस पहुंचकर
मेरी भूख
धरमेन्दर की चाय और मठ्ठी की
शिकार हो जाती है.
कुछ फोन कौल निपटाकर
खाना खाता हूं.
देर रात घर लौटकर
खाना बनाता हूं.
रात को सोते वक्त
दोनों पैरों में
जुराबें पहन लेता हूं.
अधरतिया तक करवटों के
लफ़डे होते है
लोरियों के दिन लद गये
पता है.
मां मुझे याद है
मैंने कहा था
मैं दिल्ली जाऊंगा.

Friday, December 25, 2009

सूरज अब नहीं नहाता

सूरज अब नहीं नहाता
धूप जैकेट पहनके आता
धूप की गहराई
अब कम हो गई है
सर्दी की डर से
भागी फिरती है
शाम पसर जाती है
दिनसे ही.
कोहरे की शोर
तडके शाम से
भोर तक.
हाथ में थामे
चाय की प्यालियों से
धुआं निकलता है.
गर्दन में शाल लपेटे
या गुलबन्द बांधे
बसों मे लोग.
कोहरों की शरारतों के
दिन शुरू हुए.
दो-दो रजाईयों वाली
सर्दी की रात
नया साल नई दिल्ली.

Friday, December 4, 2009

विग्यापन

घरों की दीवारों
मकानों की चबूतरों
गली, मोहल्ले
कस्बों की मोड पे
हर तरफ
लगा है, एक लुभावना खिलौना
सटा है, एक खूबसूरत तस्वीर
और नीचे लिखी है
दो-चार
मीठी-मीठी बातें
हर जगह
बाज़ार फैल रहा है अब.