Wednesday, September 21, 2011

ऐसे ही...आजकल

छोटी-छोटी अंखियों में, मोटी-मोटी बूँदें हैं
नींद ने ऐसे ही, कितनी रातें गूंथे हैं
ज़िन्दगी के साथ में, डाकू के करतबें है
दिल ने धड़कने में, सांसें-सांसें लूटे हैं॥
ऐसे ही..आजकल.

Thursday, August 26, 2010

ज़िन्दगी पगलाई है।

एक पर्चे पे नाम लिखा

साहब(गुलज़ार) ने मेरा,

दिल ने ली अंगड़ाई है,

ठंडी हवा सी आई है,

इतराके, उछलके

फुदकके खुशी के दाने चुगती

मुद्दतों बाद

ज़िन्दगी पगलाई है।

Tuesday, August 17, 2010

बाप रे

पप्पू सोने जाते वक़्त सोचने लगा,
बाप रे,
कितना मुश्किल होता
अगर हम जैसे लोगों के पास
कोई एक मुमताज होती,
पूरा एक ताजमहल बनवाना होता उसकी याद में.
बाप रे
सोचते सोचते सो गया पप्पू .
सुबह उठकर काम पे चला गया
शायद आज फिर रात के वक़्त सोचे
बाप रे.

Saturday, July 31, 2010

नई चिड़ियों में आग है

नई चिड़ियों में आग है
आजकल
हर तरफ दाग है
धू -धडाक, माथा-पच्ची यारों
ज़िंदगी साग है

किस करवट बैठेगी मुनिया
किसको है ये खबर
किस जगह ठहरेगी दुनिया
श्याम, सोम, समर/ रात- दिन- दोपहर

ताल है उल्टा- पुल्टा कुल्टा
बेसुरा राग है
नई चिड़ियों में आग है
आजकल
हर तरफ दाग है

फूँक मारके दिल बुझाए
एक ही इशारे से
दल बदलके उसकी हो जाए
एक ही किनारे से

काल बनके सर पे बैठे
खूबसूरत काग है
नई चिड़ियों में आग है
आजकल
हर तरफ दाग है

नई चिड़ियों में आग है
आजकल
हर तरफ दाग है
धू -धडाक, माथा-पच्ची यारों
ज़िंदगी साग है

Wednesday, June 2, 2010

खूं रगों में खाली है

बातों की बतीहर से रौशन, रातें काली काली है
रातें लम्बी लम्बी काली, खूं रगों में खाली है

है उचक्का दिल अगर तो, दिनभर दिवाली है
तू कहीं गर रुक गया तो, वक़्त की तू साली है

है बड़ा जालिम सिपाही, आँखों में तेरी लाली है
मिल गया हाथों से हाथ, तो समझना ताली है

ये कबीरा दिल लगा न, कोई नहीं दिलवाली है
रोयेगा मंदिर में जाके, तू भी एक सवाली है

है अगर सरकार तेरी, करनी तो रखवाली है
कुछ अगर खो गया तो, तू बड़ा मवाली है

रातें काली काली है, रातें काली काली है....


Sunday, May 30, 2010

शादी की ३७वीं सालगिरह

कोई - सौ किलोमीटर चलके आता है.
पुराने हो चुके किसी ३७ साल की बात के लिये
ज़ुबां पे एक शब्द तक नहीं,
सुबह से घर में चहल-पहल रहती है
पुलाव और मटर की खुश्बू में
कुछ रिश्ते महक रहे हैं
२९
मई २०१०
शादी की ३७वीं सालगिरह
माँ बाबूजी को
मुबारक हो

Thursday, May 20, 2010

उम्र की उपलब्धि

उम्र की उपलब्धि
रोज़ माथे पर सवार हो जाती है
कुछ खुदबुदाहट होता है
और सर के कई बाल सफ़ेद हो जाते है
थोड़े खुशफहमी में दिन कटता है
और कुछ खुशबू आसपास चक्कर लगाती है
एक बाती में फंसी अगरबती
खुशबू और धुँआ उगलता है
अपनी तक़दीर की अगरबती बनाके
जलाओगे तो खुशबू तो आयेगी ही
माथे की लकीर भी
खुशबू के साथ मिट जायेगी.